उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
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अकस्मात् एक दिन प्रो० सुदर्शन को नलिनी का एक पत्र मिला। लिखा था–
प्रिय डाक्टरजी!
समाचार-पत्र में मैंने पढ़ा कि आपको डॉक्टर की उपाधि मिल गई है। इसके लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
‘‘जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं समझती हूँ कि मेरा विवाह एक महान भूल हुई है। मुझे पति नहीं मिला। एक परजीवी (पैरासाइट), रक्त चूसने वाला कृमि मिला है।’’
‘‘मैं सर्वथा असन्तुष्ट हूँ। उस पर मुसीबत यह है कि मेरे पेट में बच्चे की स्थापना हो चुकी है। प्रसव के लिए मैं दिल्ली ही आ रही हूँ। मैंने माँ को लिखा है। उसका उत्तर पाते ही मैं आ जाऊँगी।’’
‘‘भाग्य का खेल है कि एक समय मैं अपना वरण करने वाली थी। उस समय मुझे विश्वास हो रहा था कि आप मुझसे विवाह का प्रस्ताव करने वाले हैं। श्रीपति भैया ने कहा भी था कि यदि मैं कहूँ तो वे इसमें मेरी सहायता कर देंगे। परन्तु मुझे अपने सौन्दर्य और कार्य-पटुता पर इतना विश्वास था कि मुझे उनके हस्तक्षेप से कार्य बिगड़ता दिखाई दिया था।’’
‘‘सुमति भाभी को देखकर तो मैं हत्प्रभ हो गई थी। यदि कोई साधारण रुपरेखां की स्त्री होती तो मैं आपको उससे छीन ले जाती। परन्तु सुमति भाभी से मैं होड़ नहीं लगा सकी। अतः पत्नी से बहन के स्थान पर आसीन होना स्वीकार कर लिया। इससे मैं घाटे में रही हूँ।’’
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