उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘जब दिल्ली आना होगा तो आपको सूचित करूँगी। मेरा निवेदन है कि सुमति को दिखाए बिना आप यह पत्र फाड़ डालें। उसे मैं पृथक् पत्र लिख रही हूँ।’’
सुदर्शन यह पत्र अपनी पत्नी को सुनाए बिना नहीं रह सका। पत्र सुन सुमति ने कहा, ‘‘आपने यह क्या कर दिया है?’’
‘‘क्यो, क्या हुआ?’’
‘‘एक अबला के साथ विश्वासघात किया है।’’
‘‘विश्वासघात तो तब होता जब मैंने उसे किसी प्रकार का वचन दिया होता कि मैं उसकी बात किसी अन्य को नहीं बताऊँगा।’’
‘‘वह मूर्ख यदि अपने मन के उद्धार प्रकट कर बैठी थी तो आप या तो वह पत्र उसको वापस कर देते, अन्यथा उसके निर्देशानुसार फाड़ डालते और उसको लिख देते पुनः इस प्रकार की बातें न लिखें।’’
‘मैं इसका यह अर्थ समझा हूँ कि उसने यह बात इसलिए लिखी है कि मैं तुमको यह पत्र न देखने दूँ और तुम पत्र देख लो।’’
‘‘क्यों, इससे वह क्या सिद्ध करना चाहती है?’’
‘‘हम दोनों के मध्य वह झगड़ा कराना चाहती है।’’
‘‘तो क्या इस मूर्खतापूर्ण बात से वह मेरे मन में आपके प्रति रोष उत्पन्न करना चाहती है?’’
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