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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘हाँ’’ ए ‘‘मुझे तो इसमें किसी प्रकार के रोष की बात प्रतीत नहीं हुई। दो बातें हो सकती है। एक तो आपका उससे शुद्ध सखा-सखी का सम्बन्ध हो सकता है। इसमें रोष का कोई कारण नहीं। दूसरे किसी सीमा तक आपका उसके साथ धनिष्ठता का सम्बन्ध भी हो सकता है। उसमें तो आपकी अपने से अघिक समीपता सिद्घ हो गई है। यह तो मेरे लिए अत्यन्त हर्ष का विषय हो सकता है। विधाता ने मुझे आपके लिए ही गढ़ा था तभी तो आप उसे छोड़ मुझे प्राप्त हुए हैं।’’

‘‘कदाचित् वह यह आशा करती है कि मैं तुमसे अब तक ऊब गया हूँगा।’’

‘‘इसका मेरे साथ क्या सम्बन्ध है? मुझे तो आपके ऊबने के लक्षण वैसे दिखाई दिए नहीं। यदि आप कभी ऊब भी गए तो फिर क्या? मेरे लिए चिन्ता का विषय तब होगा जब मैं आपसे ऊबने लगूँगी।’’

‘‘तो क्या ऐसी भी सम्भावना है?’’

‘‘अभी तक इसके भी कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए।’’

‘‘सत्य?’’

‘‘कभी दिखाई देंगे तो मैं आपको स्पष्ट बता दूँगी।’’

‘‘मैं तुमको मार डालूँगा। तुम-जैसी सुन्दर पत्नी को मैं छोड़ नहीं सकूँगा।’’

‘‘मरने के भय से मैं आपसे प्रेम का ढोंह नहीं रच सकती। देखिए, मैं आपको अपना आत्मविश्लेषण बताती हूँ।’’

‘‘एक दिन मैं ‘ईशावास्योपनिषद्’ पढ़ रही थी कि माँ मेरे पास आई और कहने लगी कि मेरे बाबा मेरे विवाह की चिन्ता करने लगे हैं।’’

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