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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘मैं माँ का मुख देखने लगी। उन्होंने बताया कि उन्होंने एक लड़का देखा है।’’

‘‘मैंने माँ से पूछा कि क्या वे उनके गुण-दोषों से सन्तुष्ट हैं?’’

‘‘माँ ने कहा, हाँ, उन्हें उनमें अनेक गुण दिखाई दिए हैं। क्योंकि मैं उनकी गृहीता पालिता हूँ। इस कारण वे अपना उत्तरादायित्व बहुत अधिक समझते हैं।’’

‘‘मैंने कह दिया, ठीक है और मैं पुनः उपनिषद् पढ़ने में लग गई। माँ कुछ देर तक मेरी ओर देखती रही और फिर पूछने लगी कि क्या मैं वर को देखना चाहूँगी?’’

‘‘मैंने पूछा, मैं क्या करूँगी देखकर?’’

‘‘उनका कहना था कि पसन्द-ना-पसन्द कर सकती हूँ।’’

‘‘मैंने कह दिया, तुम देख लो, जैसा तुम कहोगी, मैं मान जाऊँगी।’’

‘‘माँ और पिताजी ने आपको देखा। आपकी माताजी और निष्ठा बहन ने मुझको देखा। बात लगभग निश्चित हो गई। फिर आपके आग्रह पर मुझे यहाँ लाया गया। इस प्रकार जहाँ आपने मुझे देखकर पसन्द किया, वहाँ मैंने आपको, बन-ठनकर अपने-आपको दिखाने के लिए तैयार देख, आपके विषय में बहुत ही हीन सम्मति बना ली।’’

‘‘घर पर जाकर बात हुई। मुझसे पूछा गया और मैंने आपके विषय में अपनी सम्मति बता दी। मेरा कहना था कि आप बहुत ही फूहड़ स्वभाव के व्यक्ति हैं। पिताजी का कहना था कि आप ज़माने के शिकार हो रहे हैं। दिल्ली के समाज का फूहड़पन की आपमें दिखाई दिया है। उनका यह मत था कि आप निर्मल बुद्धि व सरलचित्त व्यक्ति हैं।’’

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