उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘मैंने उनके कथन को प्रमाण माना और विवाह हो गया। अब उसे एक वर्ष हो रहा है। पिताजी के कथन की सत्यता का प्रमाण मुझे नित्य मिलता जाता है।’’
‘‘अच्छा! क्या प्रमाण मिल रहा है?’’
‘‘देखिए, दो मास के लगभग हुए हैं, मैंने आपसे कहा था कि आप विकासवाद की सत्यता में कोई प्रमाण बताइए। कोई और पति होता तो कह देता कि पहले अंग्रेजी पढ़ो, फिर स्कूल-कॉलेज में जाकर विज्ञान पढ़ो, तभी तुम्हें वैज्ञानिक विषयों पर परीक्षण बताए जा सकते हैं। परन्तु आपके चित्त की सरलता यह है कि आप उस विषय की पुस्तकें ला-लाकर उनका अध्ययन करने में लगे हैं। दो मास से निरन्त आप ऐसा कर रहे हैं और मुझे विश्वास है कि अब तक आपके पास कहने योग्य कोई बात नहीं है।’’
‘‘देखों सुमति!’’ डॉ० ने गम्भीर होकर कहा, ‘‘मैंने इन दो महीनों में गम्भीरतापूर्वक प्राणिशास्त्र का अध्ययन किया है। किन्तु अभी तक मैं ऐसा कोई परीक्षण ढूँढ़ नहीं सका जिससे एक जाति का प्राणी दूसरी जाति के प्राणी में परिवर्तित किया जा सका हो।’’
‘‘फिर भी ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं। जिससे यह सम्भावना प्रतीत होती है कि लम्बे काल में जातियों में परिवर्तन हुए हैं। परन्तु वे लक्षण तो उससे भी दुर्बल हैं जो तुम आत्मा और परमात्मा के विषय में दिया करती हो।’’
‘‘लक्षण और परीक्षण में अन्तर होता है। परीक्षण एक साक्षी की भाँति हैं और लक्षण केवल अनुमान भी हो सकता हैं।’’
‘‘तो आप अपना अमूल्य समय इन मोटी-मोटी पुस्तकों को पढ़ने में मत व्यतीत करिए। इन पुस्तकों ने बहुत सीमा तक मुझे आपकी संगति से वंचित कर दिया है।’’
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