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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


खड़वे के नागपुर लौटने से पूर्व उसने उसे दस मिनट तक अपने कमरे में बुलाकर एकान्त में समझाया था। उसने उसको बताया था कि वह उसको अपनी माँ की भाँति सरलचित समझकर इस परिवार में लाई है, परन्तु उसने तो अपनी अधीरता दिखाकर स्वयं को पशु सिद्ध कर दिया है।

कृष्णकान्त समझ गया कि विवाह से पूर्व ही नलिनी के सम्बन्ध के विषय में कात्यायिनी को विदित हो गया है।

अगले दिन कात्यायिनी का ध्यान उसके मुख पर चला गया। मुख फूला हुआ था। उसने उसकी कलाई पर बँधा रूमाल भी देखा। उस पर मर्करी क्रोम का लाल रंग देख वह समझ गई कि वह और कुछ नहीं, घाव पर बँधी पट्टी है।

कात्यायिनी ने साश्चर्य पूछा, ‘‘यह क्या हुआ?’’

‘‘किसी खूँखार जानवर से पाला पड़ गया था।’’

‘‘यहाँ खूँखार जानवर कहाँ से आया? कहीं नलिनी की ओर तो संकेत नहीं कर रहे? वह तो शिक्षित, सभ्य और बुद्घिशील लड़की है। निश्चय ही तुमने उसे तंग किया होगा।’’

खड़वे समझ गया कि कात्यायिनी इस विषय में कुछ नहीं जानती और वह अपनी करतूत का बखान कर भूल करने ही वाला था। अतः उसने कात्यायिनी के विचार की पुष्टि करते हुए कहा, ‘‘मैंने तंग नहीं किया था। मैं तो प्यार ही कर रहा था परन्तु उसके मन में न जाने क्या आया कि धप्प से मेरे मुख पर एक टिका दिया। वह तो गाल पर काटने वाली थी कि मैंने उसका मुख दूर हटाना चाहा तो उसने मेरी कलाई पर काट दिया। जब उसने देखा की कलाई से रक्त प्रवाहित होने लगा है तो उसने छोड़ दिया और फिर स्वयं ही धो-पोंछकर पट्टी भी कर दी।’’

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