उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘अच्छा, छोड़ो। देखो, उसे लिवाने के लिए शीघ्र आ जाना और भले व्यक्तियों की भाँति रहते हुए अपनी सम्पति पर मितव्ययिता से कार्य चलाना–तुम्हारी अपनी पत्नी के विषय में भी मेरा यही कहना है।’’
कात्यायिनी ने नलिनी से भी गाल के विषय में बात की थी। उससे भी उसे सन्तोष नहीं हुआ। वह भी चाहती थी कि नलिनी को शीघ्र पति के पास चला जाना चाहिए।
कात्यायिनी खड़वे को सन्मार्ग पर नहीं ला सकी। तीन मास तक वह अपनी पत्नी को लिवाने के लिए नहीं आया। नलिनी नौकरी छोड़ नागपुर जाने के लिए तैयार हो चुकी थी परन्तु प्रति सप्ताह खड़वे का पत्र आ जाता था कि अभी तक कोई मकान नहीं मिल पाया है। फिर एक बार उसका पत्र आया कि मकान मिल तो गया है किन्तु उसकी सफाई इत्यादि हो रही है। फिर पत्र में लिखा कि अब वह उसमें फरनीचर लगवा रहा है। उसमें बहुत खर्च हो रहा है, इसमें अगले मास से पूर्व आना उसके लिए शक्य नहीं। इस प्रकार तीन मास निकल गए और इधर नलिनी के गर्भ के लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगे। अतः यह उचित समझा गया कि श्रीपति अपनी पत्नी के साथ जाकर बहन को नागपुर छोड़ आए।
जब वे नागपुर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि न तो वहाँ कोई मकान लिया गया है और न ही किसी मकान में फरनीचर फिट करवाया गया है।
श्रीपति और कात्यायिनी जब नलिनी को लेकर नागपुर पहुँचे तो खड़वे उनको लेने के लिए स्टेशन पर भी नहीं आया। यद्यपि उन्होंने अपने आने का दिन और समय उसको लिख दिया था तथा तार भी दे दिया था।
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