उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
|
327 पाठक हैं |
बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
इसका उत्तर देते हुए कात्यायिनी ने कहा, ‘‘कल तुमने मिलने के अनन्तर ही हम अपना आगे का कार्यक्रम निश्चित्त करेंगे।’’
कृष्णकान्त ने नलिनी का ट्रंक उठाया और रिक्शा में बैठ दोनों नए मकान में चले गए। सामान रख भोजन की अन्य कोई व्यवस्था न देख दोनों समीप ही एक भोजनालय में भोजन करने चले गए।
रात को दोनों आराम से सोये। सोकर उठने पर नलिनी ने पूछा, ‘‘अब क्या करने का विचार है?’’
‘‘चरित्रहीनता का आरोप लगाकर मुझे सरकारी स्कूल से निकाल दिया गया था। इस कारण अब किसी स्कूल अथवा कॉलेज में नौकरी मिलना सम्भव नहीं। विवश होकर मैंने जुआ खेलना आरम्भ किया था किन्तु दुर्भाग्य ने वहाँ भी साथ नहीं छोड़ा।’’
‘‘ऐसा करिए एक खुला-सा मकान जिसमें चार-पाँच कमरे हों, किराए पर ले लीजिए। वहाँ हम प्राइवेट स्कूल चलाकर अपना निर्वाह कर लेंगे।’’
‘‘इस प्रकार स्कूल चलना कठिन है।’’
‘‘आप मकान तो ढूँढ़िए।’’
‘‘इस प्रकार का कोई अच्छा मकान सौ-डेढ़ सौ रुपए किराए से कम में मिलेगा नहीं।’’
‘‘ठीक है, आप ढूँढ़ लीजिए।’’
‘‘यहाँ मकानों के एजेण्ट हैं, यदि कहो तो उनके द्वारा खोज कराऊँ!’’
|