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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘हाँ, आप स्वयं ढूढिएँ और उन्हें भी कहिए।’’

‘‘किन्तु इसके लिए खर्चा कहाँ से आएगा?’’

‘‘मकान मैं किराए पर लूँगी, स्कूल मैं खोलूँगी, इसलिए खर्चा भी सब मैं ही दूँगी।’’

‘‘और मैं उसमें क्या रहूँगा?’’

‘‘आप उसमें अध्यापक होंगे।’’

‘‘क्या वेतन होगा?’’

‘‘रोटी-कपड़ा और निवास।’’

‘‘तो मकान ढूँढ़ने जाने का खर्चा पहले दे दो।’’

नलिनी ने पाँच रुपए का एक नोट अपने पर्स में से निकालकर कृष्णकान्त को दे दिया।

दोनों ने रेस्टोराँ में प्रातः का अल्पाहार किया और अपने-अपने कार्य में लग गए।

नलिनी ने कहा, ‘‘मध्याह्न का भोजन करने के लिए आप भैया के होटल में आ जाइएगा, मैं वहीं मिलूँगी।’’

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