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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


इस प्रकार नलिनी होटल में चली गई। उसके भाई-भाभी दोनों उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वहाँ पहुँचकर नलिनी ने पूर्ण परिस्थति का वर्णन कर अपनी योजना से उनको अवगत कराया तो श्रीपति ने कहा, ‘‘नलिनी! कृष्णकान्त तो बहुत ही अभद्र व्यक्ति निकला। मेरी सम्मति है कि तुम हमारे साथ ही लौट चलो। वहाँ हमारे साथ ही रहना और जब तुम्हारे बच्चा हो जाए तो उससे अवकाश पाकर कोई नौकरी कर लेना। कृष्णकान्त की इच्छा हो तो वह भी दिल्ली चला आए। किसी प्राइवेट स्कूल में उसको भी स्थान मिल जावेगा।’’

नलिनी ने कुछ विचारकर कहा, ‘‘एक बार तो यहाँ पर यत्न कर लूँ।

उनका वहाँ आना उचित नहीं होगा।’’

नलिनी अपने पति द्वारा सृमति के प्रति किए गए व्यवहार को स्मरण कर उसको वहाँ ले जाना उचित नहीं समझती थी। अपने माता-पिता से दूर रहने वाले अपने पति पर वह शासन करने की आशा अधिक करती थी।

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