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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


दो-तीन दिन की खोज के परिणामस्वरूप नगर के मध्य में उनको एक मकान मिल गया। फर्नीचर किराए पर लेकर उसको तैयार किया गया और फिर लड़के और लड़कियों को हाईस्कूल की परीक्षा में सहायतार्थ शिक्षा की व्यवस्था का विज्ञापन प्रकाशित किया जाने लगा।

समाचार-पत्रों तथा हैण्डबिलों द्वारा स्कूल का प्रचार किया जाने लगा। मकान पर एक बड़ा-सा बोर्ड भी लगा दिया गया। साथ ही विभिन्न कक्षाओं का शुल्क और घर जाकर पढ़ाने के पारिश्रमिक का भी विवरण एक बोर्ड पर लिखकर टाँग दिया गया।

वार्षिक परीक्षा में अभी चार मास शेष थे। नलिनी का विचार था कि इस अवसर पर उनको काम मिल जाएगा। फिर उसके बाद वह प्रसवकाल तक कार्य नहीं कर सकेगी। तीन मास के अवकाश के अनन्तर वह फिर स्कूल में कार्य करना आरम्भ कर देगी।

बुद्घिमान विचारकर कार्य करते हैं किन्तु मूर्ख उसमें सदा बाधक बन जाया करते हैं। नलिनी का स्कूल चल निकला। लगभग एक सौ विद्यार्थी उसमें प्रविष्ट हो गए। उनसे चार मास की फीस अग्रिम ले ली गई। एक विद्यार्थी से चालीस रुपया लिया जाता था। इस प्रकार लगभग चार हजार रुपया उनको मिल गया।

एक बार तो कृष्णकान्त मान गया था कि उसकी पत्नी उससे अधिक समझदार है। स्कूल में अंग्रेजी, गणित और मराठी पढ़ाने का प्रबन्ध था। अधिक विद्यार्थी अंग्रेजी पढ़ने वाले थे। कुछ विद्यार्थी प्रातःकाल आते और कुछ सायंकाल। नलिनी एक घण्टा प्रातः और एक घण्टा सायं अंग्रेजी पढ़ाती थी। कृष्णकान्त गणित पढ़ाता था। मराठी पढ़ाने के लिए उन्होंने एक अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर रखा था।

स्कूल बड़ी निपुणता से चल रहा था। परीक्षा के दिनों में पति-पत्नी अपने विद्यार्थियों की सहायता कर रहे थे।

चार मास के प्रयत्न से नलिनी थक गई थी। स्कूल में कार्य करने के अतिरिक्त वह दो लड़कियों को उनके घर पर जाकर भी पढ़ाया करती थी।

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