उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
उनसे उसको सत्तर रुपया प्रतिमास अतिरिक्त आय हो जाती थी।
जिस दिन अंग्रेजी की परीक्षा समाप्त हुई वह अनुभव कर रही थी कि अब उसको आराम करना चाहिए। वह जब पलंग पर लेटी तो उसको सुमति, निष्ठा और सुदर्शन इत्यादि का स्मरण हो आया। वह उठी और सुदर्शन को पत्र लिखने बैठ गई। यह वही पत्र था जो सुदर्शन ने अपनी पत्नी को सुनाया था।
पत्र लिख उसने सुदर्शन को उसके कॉलेज के पते पर डाल दिया। अब वह मन में अपने दिल्ली जाने का विचार कर रही थी। उसने मन में निश्चय कर लिया था कि वह प्रसव के लिए दिल्ली जाएगी और पाँच मास वहाँ रहकर पुनः आकर स्कूल चलाएगी।
उसने मकान को न छोड़ने का निश्चय कर लिया था। फर्नीचर का सवा सौ रुपया मासिक किराया पड़ रहा था, वह वापस कर दिया। उसने मकान का किराया पेशगी देकर जाने का निश्चय किया। कुछ होटल और अन्य लोगों के भी भुगतान करने थे। मराठी पढ़ाने वाले अध्यापक का एक मास का वेतन भी देना था।
वे स्वयं स्कूल के ऊपर वाले कमरे में रहते थे। वहाँ बैठी हुई नलिनी अपने पिछले चार मास के आय-व्यय का विवरण तैयार कर रही थी। उसने अपनी डायरी निकाल उसमें हिसाब देखा तो विदित हुआ कि अभी बैंक में तीन हज़ार रुपया जमा है, जिसमें नौ सौ रुपए के लगभग बाहर वालों को देना है। उसका विचार था कि परीक्षाएँ समाप्त होते ही वह सबका हिसाब चुकाकर और मकान का भाड़ा अग्रिम देकर, मकान को ताला लगा दिल्ली चल देगी। कृष्णकांत को भी वह दिल्ली चलने के लिए कहने लगी। कृष्णकान्त ने जाने से इन्कार तो किया नहीं परन्तु उसका दिल्ली जाने के लिए उत्साह नहीं हो रहा था।
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