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उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610

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मैं न मानूँ...


‘‘मेरा विचार है कि आपको वहाँ नहीं जाना चाहिए।’’

‘‘क्या शक है तुमको, उसने रुपए भगवान को दिए हैं या नहीं?’’

‘‘मेरा विचार है कि वह रुपए हज़म कर गई है। उसने भगवानदास को बताया ही नहीं।’’

‘‘मेरा विचार है भगवानदास को विदित है, वह ही चुप है। अभी तो देखती जाओ।’’

‘‘मैं तो यही कहूँगी कि आपको वहाँ नहीं जाना चाहिए। आपका उस धनी बाप की बेटी से अपमान होता देख, मुझको दुःख होता है।’’

‘‘मैं समझता हूँ, महीने से ज्यादा हो गया है भगवानदास को उस घर में गए हुए, और दो महीने से ऊपर हो गए हैं माला को देखे हुए। तुमको और मोहिनी को वहाँ जाना चाहिए।’’

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