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उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610

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मैं न मानूँ...


‘‘ओह! मोहिनी, तब तो तुम मुझसे अधिक भाग्यशालिनी हो। हमको तो देवीजी की माताजी कभी होटल ले नहीं गईं।’’

‘‘परन्तु,’’ माला ने बात बदल दी, ‘‘मोहिनी बहन को वहाँ का खाना पसन्द नहीं आया प्रतीत होता। बहुत कम खाया है इन्होंने?’’

‘‘हाँ!’’ मोहिनी का उत्तर था, ‘‘घर में तो नमक, मिर्च, मसाले, अचार, चटनी खाने का अभ्यास है। वहाँ सब फीका-फीका था।’’

‘‘और खाने में क्या-क्या था?’’

‘‘टोमाटो-सूप, फिश फ्राइड, चिकन-रोस्टिड, मटन-करी, पुडिंग और कॉफी थी।’’

‘‘चीज़ें तो सब मज़ेदार थीं?’’

‘‘होंगी, मुझको तो फीकी ही लगी थीं।’’

हमको तो इसकी माँ यह फीका पकवान भी नहीं खिलातीं।’’

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