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उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610

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मैं न मानूँ...


चाय समाप्त हो गई तो करीमा ने उठते हुए कह दिया, ‘‘चलो भाभी, घुमा लाऊँ।’’

‘‘मोटर में?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘मैं तो हवाई जहाज़ में घूमने जाऊँगी।’’

‘‘सत्य!’’ भगवानदास ने पूछ लिया।

‘‘मैं इस छकड़े में नहीं जाऊँगी।’’

भगवानदास को अपनी पत्नी की ऐसी बेतुकी बातें सुनने का अभ्यास हो गया था। फिर भी वह करीमा की डेढ़ सौ रुपए वाली बात समझ नहीं सका था। उसने करीमा के सामने अपनी पत्नी से कुछ नहीं पूछा। आज डाक्टर और करीमा दोनों मोटर में शहर चले गए। ड्राइवर मोटर चला रहा था। करीमा बुर्का पहने पीछे बैठी थी और भगवानदास आगे ड्राइवर के पास।

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