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उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610

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मैं न मानूँ...


‘‘रामकृष्ण के पिता मिले हैं?’’

‘‘नहीं, वे तो बम्बई गए हुए हैं।’’

‘‘देखो भगवान! अभी इस बात की जाँच-पड़ताल हो जानी चाहिए।’’

जब सीताराम खाना लेकर आया तो नूरुद्दीन ने उससे पूछा, ‘‘साहब के पिताजी को पहचानते हो?’’

‘‘जी हाँ।’’

‘‘वे यहाँ कब आए थे?’’

‘‘जब से मैं आया हूँ वे हर दूसरी या तीसरी तारीख को आया करते थे। इस महीने भी वे तीसरी तारीख को आए थे।’’

‘‘यह तारीख तुमको कैसे याद है?’’

मेरा वेतन भी उन्हीं दिनों में मिला करता है। इस बार मेरा वेतन दूसरी तारीख को मिला था और पिताजी तीसरी तारीख को आए थे।’’

‘‘कल तुम कहीं बाहर भी गए थे?’’

‘‘जी नहीं, सब्जी-भाजी यहाँ बिकने आ जाती है। कल बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ी।’’

‘‘लालाजी को तुमने कल यहाँ देखा था?’’

‘‘जी नहीं।’’

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