उपन्यास >> मैं न मानूँ मैं न मानूँगुरुदत्त
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मैं न मानूँ...
‘‘ढूँढ़ने पर मिल सकता है। हाँ, एक है। मगर मैं उससे तुम्हारी बहन के सम्बन्ध की बात कहते हुए संकोच करता हूँ।’’
‘‘कौन है वह?’’
‘‘नूरुद्दीन का लड़का मुनव्वर।’’
सुलक्षणा चुप रही। वह बितर-बितर अपने श्वसुर का मुख देखती रह गई। लेकनाथ ने कहा, ‘‘मेरी अपनी लड़की उसकी आयु की होती तो रिश्ता तज़वीज करता।’’
‘‘और माताजी मान जातीं?’’
‘‘पूछकर देख लो।’’
सुलक्षणा ने बात रामदेई से की। रामदेई ने कह दिया–‘‘उसकी माँ और दादी लाखों में एक हैं, मगर वे हैं मुसलमान।’’
‘‘यही तो पूछ रही हूँ कि इस अवस्था में यदि आपकी लड़की उसकी आयु की होती और पिताजी मुनव्वर से विवाह के लिए कहते तो आप स्वीकार करतीं?’’
‘‘कर लेती ।’’
‘‘क्यों?’’
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