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उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610

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मैं न मानूँ...


‘‘माँ ने कहा था कि मेरी दादी आई है और इस मोटर में जाएगी। इसलिए नमस्ते कहने के लिए मुझको यहाँ खड़ा कर गई है।’’

रामदेई ने उसको पकड़, अपने अंग लगा लिया। उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए वह आँसू बहाने लगी। ‘‘फूल,’’ करीमा ने कहा, ‘‘आओ, ज़रा हमारे साथ मोटर पर चलो। हम तुमको अभी थोड़ी देर में यहाँ छोड़ जायेंगी।’’

‘‘कहाँ चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारे पिता के पास। उनको भी नमस्ते कर आओ।’’

‘‘मेरे पिता? वे तो मर चुके हैं?’’

‘‘यह भी तुम्हारी माँ ने बताया है?’’

लड़का विस्मय में मुख देखता रह गया। करीमा ने कहा, ‘‘आओ, वे जीवित हैं। तुमको देखकर बहुत प्रसन्न होंगे।’’

‘‘माँ से पूछ आऊँ?’’

‘‘सब औरतों में बैठी माँ से कैसे पूछने जाओगे? और फिर एक घंटे में तो हम लौट ही आएँगे।’’

लड़का झिझकता था। रामदेई ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कह दिया, ‘‘फूल बेटा! आ जाओ। वे तुमको बहुत प्यार करेंगे।’’

लड़का निश्चय नहीं कर सका। वह मोटर में चढ़ा तो मोटर कोठी में जा पहुँची। मोहिनी ने लड़के को बताया, ‘‘मैं तुम्हारी फूफी हूँ। और यह तुम्हारी चाची।’’

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