उपन्यास >> मैं न मानूँ मैं न मानूँगुरुदत्त
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मैं न मानूँ...
‘‘विवाह के वक्त तुम्हारे श्वसुर को बहुत खुशी थी और सुना है, उसने अपनी लड़की की शादी पर तीस हज़ार खर्च किया है।’’
‘‘क्या उसको हमसे ज्यादा खुशी थी?’’
‘‘हाँ, और होनी भी चाहिए थी। उसकी लड़की को भगवान जैसे डॉक्टर के घर नौकरी मिल गई थी। अब भापा की नौकरी लगी है और खुशी हमको हो रही है।’’
‘‘फिर भी कितना बजट है नूरुद्दीन!’’
‘‘ऐसे कामों में मैं बजट नहीं बनाया करता। मुनव्वर की वर्षगाँठ पर मैंने छोटी-सी दावत दी थी, और पाँच सौ खर्च हो गया था।’’
‘‘और यह दावत उससे बड़ी होगी?’’
‘‘जो भी हो जाए। बताओ दोस्त! किस दिन तुमको फुरसत है?’’
‘‘किस दिन का प्रबन्ध करना चाहते हो?’’
‘‘आने वाले ‘इतवार’ को।’’
जब भगवानदास और लोकनाथ चुप रहे तो नूरुद्दीन ने एक कागज़ उठाया और सामान की सूची बनानी आरम्भ कर दी।
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