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उपन्यास >> मैं न मानूँ

मैं न मानूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7610

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मैं न मानूँ...


‘‘तो मेरी बीवी को भी डर नहीं लगेगा।’’ भगवानदास ने कह दिया।

‘‘अच्छा, आज पूछकर बताना। कल यहाँ आओगे या मैं वहाँ पूछने आऊँ?’’

‘‘मैं यहाँ आऊँगा। मैं यहाँ नित्य आने का प्रोग्राम बना रहा हूँ?’’

‘‘कल तो आ जाना। मगर नित्य का नाम न लेना।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस कह दिया। लो मैं चला।’’ नूरुद्दीन ने हाथ मिला मुस्कराते हुए भगवान की आँखों में देखा और लौट गया।

नूरुद्दीन ठीक कहता था। यद्यपि माला भोजन कर साथ के बँगले वाली मिसेज़ खोसला से बातें करने चली गई थी और उसके आने पर ही आई थी, फिर भी वह नाराज़ थी। सीताराम जाकर उसे बुला लाया था।

वह आई तो आते ही पूछने लगी, ‘‘घड़ी में समय देखिए।’’

रात के दस बज गए थे। भगवानदास कुछ उत्तर नहीं दे रहा था। वह मुस्कुराता हुआ उसके मुख पर देख रहा था। उसे चुप देख माला ने पूछ लिया, ‘‘अभी कॉलेज से आ रहे हैं क्या?’’

‘‘नहीं; माँ से मिलने गया था।’’

‘‘क्यों?’’ क्या था उनको?’’

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