उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
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कल्लू का इक्का हल्का था, परन्तु एक घोड़े से खींचा जाता था। राज्य का रथ दो घोड़ेवाला और तेज़ भागनेवाला था। इस कारण विभूतिचरण और श्यामबिहारी रथ में कल्लू के इक्के को सहज ही पकड़ पाए। वह भटियारिन की सराय के बाहरवाले कुएँ से जल निकाल घोड़े को पिला रहा था कि उसको पहचान इन्होंने भी रथ को वहाँ ले जाकर खड़ा कर दिया। विपिन इक्के में नहीं था। पता लगा कि वह सराय में भोजन के लिए गया है। यह सूचना कल्लू इक्केवान ने ही दी थी।
श्यामबिहारी रुपये को वापस पाने के लिए अधिक उत्सुक था। इस कारण यह जानते ही कि विपिन सराय की भोजनशाला में गया है, उसके पीछे चल दिया। कल्लू ने इक्के में घोड़ा जोता और बिना विपिन के ही जाने लगा तो विभूतिचरण ने पूछ लिया, ‘‘कल्लू मियाँ, किधर जा रहे हो?’’
‘‘वापस गाँव को जा रहा हूँ।’’
‘‘तो आगरा नहीं जाओगे?’’
‘‘अब विपिन लाला आगरा नहीं जाएँगे।’’
‘‘परन्तु वह गाँव तो जा सकता है।’’
‘‘अब उसका बाप यह रथ लेकर आया है तो वह मेरे इक्के पर क्यों चढ़ेगा?’’
‘‘यह रथ तो मेरी सवारी में है।’’
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