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उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


विभूतिचरण इस प्रबन्ध से सन्तोष अनुभव करता हुआ बाहर आ श्यामबिहारी से पूछने लगा, ‘‘अब क्या कार्यक्रम है?’’

‘‘हम पिता-पुत्र आपके साथ आगरा चल रहे हैं और विपिन की बहू को लेकर आएँगे।’’

‘‘ठीक है। परन्तु कुछ लोग साथ आने के लिए होने चाहिएँ। बहू और उसके आभूषण-वस्त्र सुरक्षा से गाँव में पहुँचने चाहिए।’’

‘‘इसका प्रबन्ध वहाँ कर लिया जाएगा।’’

‘‘तब तो ठीक है। आप दोनों मेरे साथ रथ पर चलिए। मैं अभी दो घड़ी में आगरा पहुँच जाऊँगा। वहाँ से लौटने के विषय में मैं अभी नहीं कह सकता।’’

‘‘वह आज सायंकाल आपसे मिलकर निश्चय कर लेंगे।’’

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