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उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


अकबर को अनवर से बताया समाचार सुन पण्डित पर क्रोध आ गया। अकबर को पण्डित ने बताया था कि चित्तौड़ विजय होगा और यह हो नहीं रहा था। इससे वह पण्डित के मन में कुटिलता का भास करने लगा।

वह चित्तौड़ से आगरा लौट आया। उसका विचार था कि पण्डित को अपने गाँव से बुलाकर उसके अशुद्ध कथन के लिए दण्ड देगा।

आगरे में पहुँचा तो वह यह समाचार सुन कि महारानी ने पहले ही पंण्डित विभूतिचरण को बुलाने के लिए रथ भेजा हुआ है, परेशानी अनुभव करने लगा। उसने पूछा, ‘‘तो तुम पहले भी इस काफिर से मिलती रही हो?’’

‘‘नहीं जहाँपनाह! यह तो बच्चे की जन्मकुण्डली बनवाने के लिए उसे बुलवाया है।’’

‘‘तो पहले हम उससे मिलेंगे।’’

‘‘क्या बात है?’’ महारानी शहंशाह के माथे पर शिकन देख रही थी। वह भयभीत थी कि पण्डित के विरुद्ध कुछ सुना है शहंशाह ने।

अकबर ने अपने मन की बात छुपाने के लिए बहाना बना दिया। उसने कहा, ‘‘पण्डित ने हमारे मेवाड़ की मुहिम पर जाने से पहले यह पेशीनगोई की थी कि हमारी फतह होगी और वह हो नहीं रही।’’

‘‘मगर हो तो रही है, अगरचे फतह की रफ्तार कम है।’’

‘‘पर हमारा नुकसान अज़हद हो रहा है। मैं तो इसे पसपाई के निशानात समझता हूँ।’’

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