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उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


‘‘मगर मैंने तो हुजूर से कहा था कि मानसिंह अपने राजपूत सिपाहियों से शहंशाह की खिदमत करने को तैयार है।’’

‘‘हमारे मुसलमान सालारे-जंग ने बताया था कि राजपूत सिपाही एक राजपूत रियासत के खिलाफ मन लगाकर नहीं लड़ेंगे।’’

महारानी ने बात बदल दी। उसने पूछ लिया, ‘‘तो आप उससे दोबारा मुहिम के मुतअल्लिक पूछना चाहते हैं?’’

‘‘हाँ!’’

‘‘वह आज किसी वक्त भी आनेवाला है।’’

वास्तव में अकबर पण्डित से झगड़ा कर उससे कुछ अपनी शान में अनुचित शब्द कहलवाकर उसे फाँसी का दण्ड देने का विचार बनाकर आया था।

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