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उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


‘‘परंतु,’’ दुर्गा ने कहा, ‘‘विपिन को अपनी पत्नी को उत्सव पर नहीं ले जाना चाहिए।’’

‘‘तो ऐसा करो।’’ पंडित जी ने कहा, ‘‘तुम लड़की को जाकर समझा दो।’’

‘‘पर मैं तो उत्सव पर जाऊँगी।’’ सरस्वती बोल उठी।

‘‘वहाँ बहुत भीड़ होगी।’’ पंडित जी ने कहा।

तो क्या हुआ?’’

‘‘हुआ यह कि तुम भीड़ में दब जाओगी और मर जाओगी।’’

‘‘पिता जी! ज्योतिष लगाकर बताइए कि मैं मरूँगी अथवा नहीं।’’

विभूतिचरण हँस पड़ा। हँसकर बोला, ‘‘अच्छा। उत्सव पर जाने से पहले पता कर दूँगा।’’

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