लोगों की राय

उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ

प्रारब्ध और पुरुषार्थ

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :174
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7611

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

47 पाठक हैं

प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।


‘‘ ‘क्यों औरत!’ शहंशाह ने अपने को सुंदरी से अनभिज्ञ प्रकट करते हुए कहा, ‘तुम कौन हो?’

‘‘ ‘हुज़ूर! एक औरत हूँ। यह मेरा घरवाला खड़ा है।’

‘‘ ‘तुम कौन हो? हिंदू हो या मुसलमान हो?’

‘‘ ‘मैं एक इंसान हूँ।’

‘‘ ‘तुम किसकी औलाद हो?’

‘‘ ‘एक हिंदू औरत की औलाद हूँ। एक हिंदू से परवरिश की गई हूँ। मगर मुझको कहा जा रहा है कि मेरे पिता एक मुसलमान हैं। मैं खुद कैसे जान सकती हूँ कि मेरे पिता क्या थे और क्या हैं। साथ ही मैं एक रूह हूँ जो न हिंदू है, न मुसलमान।’

‘‘ ‘मगर मजहब तो जिस्म के साथ ताल्लुक रखता है।’

‘‘ ‘तो क्या पेट से ही बच्चा कलमा पढ़ता हुआ पैदा होता है या क्या उसके तिलक लगा होता है? हुजूर मेरा बच्चा हुआ है। वह लड़का है। मैंने बहुत गौर से देखा है। न तो उसकी सुन्नत हुई देखी है और न ही उसके तिलक लगा है।’

‘‘ ‘यह तो बच्चे के माता-पिता द्वारा जब वह दो-तीन साल का हो जाता है तो निशान बनाए जाते हैं।’

‘‘ ‘जहाँपनाह! यही तो अर्ज कर रही हूँ कि मेरे माता-पिता, जो भी थे, उन्होंने मुझ पर हिंदू के निशान बनाए थे।’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book