उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘माताजी ! हम लाहौर के रहने वाले हैं; परन्तु अब हमारा वहाँ से कोई सम्बन्ध नहीं रहा। हमारा कोई मकान-सम्पत्ति वहाँ नहीं है।’’
‘‘कोई सम्बन्धी भी नहीं?’’
‘‘सम्बन्धी तो है, पर सम्बन्ध नहीं। ताऊ हैं, ताई हैं और उनके लड़के-लड़कियाँ भी हैं। उन्होंने हमसे सम्बन्ध तोड़ दिया है।
‘‘मेरे पिताजी का दो वर्ष की लम्बी बीमारी के पश्चात् देहान्त हुआ तो मेरी माता के पास हमारे पालन-पोषण के लिए एक पैसा भी नहीं था। इसपर माताजी ने पड़ोसियों के कपड़े सी-सीकर हमारे पालन-पोषण का प्रबन्ध किया। इसको हमारे बाबा और ताऊजी ने पसन्द नहीं किया और हमारा बहिष्कार कर दिया।’’
राजमाता इस स्थिति पर चकित रह गईं। अब उसने भूमि के विषय में प्रश्न पूछ लिया–‘‘कितनी भूमि आपने पट्टे पर ली थी?’’
‘‘पाँच सौ एकड़।’’
‘‘अभी कितनी काश्त में आई है?’’
‘‘इस वर्ष केवल पचास बीघा ही काश्त में आई है। अगले वर्ष तक दो सौ बीघा हो जायेगी।’’
‘‘तो तुम हमको अगले वर्ष दो सौ बीघा का लगान देना चाहोगे?’’
‘‘ऐसा ही विचार है माताजी !’’
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