उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘तुम्हारे आने से पूर्व कई लोग भूमि लेने आये, परन्तु वे भूमि देख घबरा गये और बिना पट्टा लिए ही लौट गये। राजा साहब और मैनेजर साहब तुमसे भी यही आशा करते थे; विशेष रूप में जब उनको मालूम हुआ था कि तुम नगर-निवासी हो। इसलिए जबसे हमें तुम्हारे अपने प्रयास में सफल होने का समाचार मिला है, हम बहुत प्रसन्न हैं।
‘‘इसपर तुम अपने-आस ही, समय से पूर्व लगान देने चले आये हो। यह तो आशातीत है और तुम यह भी कहते हो कि तुम भूमि का लगान निरन्तर देते जाओगे।’’
इसपर फकीरचन्द ने वह बालक और अँगूठी वाली कहानी सुना दी, जो उसकी माँ ने सुनाई थी। इससे राजमाता बहुत प्रभावित हुई। उन्होंने पूछा, ‘‘यह पट्टा तो तुम्हारी माँ के नाम है न? क्या यह सबकुछ उनकी जानकारी में कर रहे हो?’’
‘‘जी, यह सब जो मैं निवेदन कर रहा हूँ, उनके कहे अनुसार ही कर रहा हूँ। यह सबकुछ उनका ही है। मैं तो केवल उनका प्रतिनिधि मात्र ही हूँ।’’
‘‘मैं तुम लोगों से बहुत प्रसन्न हूँ और तुम्हारी माताजी को यह अपने स्नेह की सूचक भेंट देना चाहती हूँ।’’
इतना कह उसने अपने पीछे की ओर देखा। एक नौकरानी परदे के पीछे से निकली और एक रेशमी साड़ी तथा एक स्वर्ण-कण्ठी राजमाता के सामने रख दी। राजमाता ने इन वस्तुओं को देते हुए कहा, ‘‘अपनी माताजी को यह देते हुए कहना कि कभी झाँसी आएँ तो अवश्य मिलें।’’
फकीरचन्द ने भेंट ली प्रणाम कर कहा, ‘‘मैं आपका संदेश दे दूँगा और मुझे आशा है कि माँ शीघ्र ही आपके दर्शन का लाभ उठायेंगी।’’
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