उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
सायंकाल सेठानी ने सेठजी के समक्ष एक और समस्या उपस्थित कर दी। उसने कहा, ‘‘ललिता अब चौदहवां वर्ष पार कर चुकी है। उसको मैं बम्बई में अकेले छोड़कर नहीं आ सकी। यही कारण है कि उसको साथ लेकर घूमना पड़ता है। मेरा मन चाहता है कि उसके विषय में भी विचार कर लिया जाय और अगले वर्ष उसके हाथ पीले कर दिये जाएँ।’’
‘‘भाग्यवान् ! बहुत जल्दी-जल्दी, तुम इन बच्चों को घर से निकालने का विचार कर रही हो। क्या दुःख देते हैं ये तुम्हें?’’
‘‘दुःख क्यों होगा? सज्ञान लड़की के लिए वर ढूँढ़ना कोई बुरी बात है क्या?’’
‘‘पर मैं पूछता हूँ कि लड़के की समस्या तो अभी सुलझी नहीं और लड़की की यह नई समस्या चला दी?’’
‘‘क्या आप एक व्यापार करते हुए दूसरे पर विचार नहीं करते?’’
‘‘व्यापार और लड़की के विवाह में अन्तर नहीं है क्या?’’
‘‘आपने ही तो एक दिन कहा था कि एक व्यापारी को सबकुछ रुपये-पैसे के रूप में दिखाई देता है।’’
‘‘वह तो ठीक है। हम जब एक काम में लाभ कर लेते हैं, तभी किसी दूसरे काम में जाने का साहस करते हैं। यह लड़के के काम में लाभ तो दिखाई दिया नहीं इस कारण लड़की के विषय में विचार करने के लिए मस्तिष्क काम नहीं करता।’’
‘‘ठीक है; परन्तु अब तो लड़का दिखाई दे रहा है। उसको बाँध लीजिए। विवाह पीछे सुभीते से किया जा सकेगा।’’
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