लोगों की राय

उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

270 पाठक हैं

बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘कहाँ देखा है तुमने लड़के को?’’

‘‘फकीरचन्द की माँ से मेरी बातचीत हुई है।’’

‘‘फकीरचन्द? पर वह तो हमारी बिरादरी का नहीं हैं?’’

‘‘आपने ही तो कहा था कि आपकी बिरादरी रुपये-पैसेवालों की है। भूल गये हैं आप?’’

‘‘बहुत बातें याद रखती हो? परन्तु फकीरचन्द कहाँ का धनी है?’’

‘‘काम चलता है। बढ़िया खाना-पीना होता है। सुखी है और गाँव में यश कमा रहा है।’’

‘‘कितना होगा इसके पास?’’

‘‘उस दिन माँ को हिसाब सुना रहा था। पन्द्रह हजार बचा था पिछले वर्ष और तीस हजार नकद बचा है एक वर्ष।’’

‘‘कहीं तुम्हारी लड़की को ठगने के लिए धोखा तो नहीं दे रहा !’’

‘‘तो ऐसा करो न । किसी बहाने उसका हिसाब देख लो। सब बात स्पष्ट हो जाएगी।’’

‘‘फकीरचन्द की माँ ने क्या उत्तर दिया था?’’

‘‘एक दिन बात हुई थी। उसने कहा था, ‘बहन ! तुम यहाँ ठहर ही रही हो। एक-दूसरे को जानने का बहुत अच्छा अवसर मिलेगा और समय पाकर यह सम्बन्ध बन सका तो अच्छा ही होगा।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book