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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘ठीक तो कहती थी। तुम्हें इस विषय में जाँच करनी चाहिए थी।’’

‘‘जाँच तो की है। पर पहले आपसे बात करके ही तो इसको आगे चला सकती थी।’’

‘‘अच्छा अब मुझे अपने ढँग से जाँच कर लेने दो। पीछे राय दूँगा।’’

‘‘लड़का अच्छा है, सुन्दर है, स्वस्थ है, सुशील है और समझदार है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि परिश्रमी है। किसी प्रकार का ऐब नहीं। सिगरेट तक तो पीता नहीं।’’

‘‘पहले रामचन्द्र की बात समझ लूँ, पीछे इसपर विचार करूँगा। यदि ये खेत रहते हैं तब तो यहाँ रिश्तेदारी बनाई जा सकती है, अन्यथा इसमें कुछ भी लाभ प्रतीत नहीं होता।’’

‘‘खेतों का लड़की के विवाह से क्या सम्बन्ध हो सकता है?’’

‘‘हमारे यहाँ तो हर एक बात का व्यापार से सम्बन्ध होता है।

पन्नादेवी इसका अर्थ समझ नहीं सकी। वह प्रश्न-भरी दृष्टि से अपने पति की ओर देखती रही। इसपर सेठ ने आगे कहा, ‘‘मैं तो अब खेतों का प्रबन्ध करके ही जाऊँगा। या तो इन खेतों को छोड़ने का प्रबन्ध कर दूँगा, अन्यथा यहाँ काम आरम्भ करा दूँगा। इस अवस्था में फकीरचन्द की सहायता की आवश्यकता पड़ेगी। इस बात को जानकर ही तो इस विवाह के विषय में विचार किया जा सकता है।’’

पन्नादेवी को विचार करने का वह ढँग ठीक प्रतीत नहीं हुआ। उसने कहा भी कि इन दोनों बातों को मिलाना ठीक नहीं, परन्तु सेठ ने बात बदलकर इस विषय को समाप्त कर दिया।

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