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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


अगले दिन सेठ उस समय जाग पड़ा, जब फकीरचन्द उठता था। पिता ने पुत्र को जबरदस्ती उठाया और तैयार हो तीनों चल पड़े। फकीरचन्द ने काम की दूसरी वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में खेतों में छुट्टी की थी। उसने घर के दो नौकर साथ ले लिए और सेठ तथा रामचन्द्र को साथ लेकर, नदी-पार सेठजी की भूमि पर जा पहुँचा। वह उनको उस टीले पर ले गया, जिसपर उसने घर बनाने का प्रस्ताव किया था। वहाँ खड़े होकर उसने चारों ओर का जंगल दिखाया और अपनी योजना बताते हुए कहा, ‘‘मैंने जब इस भूमि पर काम आरम्भ किया था, तो मेरे पास केवल छः सौ रुपया था। इस कारण मैं न तो मकान बनवा सकता था और न ही खेती-बाड़ी आरम्भ कर सकता था। मुझे तो लकड़ी बेच-बेचकर जहाँ अपना निर्वाह करना था, वहाँ साथ ही आगे के लिए पूँजी तैयार करनी थी। मुझे इंजिन, आरा, चक्की, मकान बनवाना था और खेतों को समतल कर तैयार करना था। सब-के-सब काम लकड़ी की आय पर निर्भर थे। साथ ही मुझको केवल तीन लकड़हारों से काम आरम्भ करना पड़ा। यदि मेरे पास प्रारम्भिक छः सौ भी नहीं होता, तो कदाचित् मैं अपने हाथ से लकड़ी काटकर और उसको बेचकर काम आरम्भ करता। इससे तो काम और भी धीरे-धीरे होता। परन्तु आपके पास तो अतुल धन है, जो आप पूँजी के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। आपको लकड़ी की आय की इतनी आवश्यकता नहीं, जितनी मुझको थी। आप तो एकदम पम्प लगवा सकते हैं, भूमि समतल करवा सकते हैं। मेरे पास लकड़ी ढोने का सामान नहीं था। इस कारण मुझे लकड़ी बहुत ही सस्ते दाम पर यहाँ गाँव में ही बेचनी पड़ती थी। आप तो मोटर ट्रक यहाँ ला सकते हैं और लकड़ी का स्टाक कर मुझसे कई गुना अधिक लाभ कर सकते हैं।’’

इस पर राम ने कहा, ‘‘पर भैया ! तुम नौकरों को अधिक वेतन देकर खराब कर चुके हो।’’

‘‘इसपर भी मुझको लाभ होता है। कारण यह कि मैं दस घण्टे जमकर काम लेता हूँ। मजदूर भी अपने वेतन के अनुसार ही काम करता है।’’

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