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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘पर तुमको वास्तव में लाभ हो रहा है क्या? यह भी एक विचारणीय बात है।’’

‘‘आपके विचार से इसको लाभ नहीं कह सकते। क्योंकि मैं केवल खेती-बाड़ी का काम ही नहीं करता। लकड़ी बेचना, आरा चलाना, चक्की चलाना, अथवा दूध-घी बेचना खेती-बाड़ी के काम नहीं है। इसपर भी मेरा कहना है कि ये सब खेती-बाड़ी की ‘बाई प्रोडक्ट्स’ (उपसृष्टि) है। मैं यह कहता हूँ कि खेती-बाड़ी के काम से बचा हुआ समय इन वस्तुओं के तैयार करवाने में लगवाता हूँ। यही कारण है कि इनको अधिक वेतन देने पर भी मुझको लाभ होता है।

‘‘मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि केवल खेती-बाड़ी तो कदाचित् लाभ नहीं दे सकती। उससे बचे समय को अन्य कामों में व्यय करने से जो इस भूमि से सम्बन्ध रखते हैं, लाभ होता है।’’

इसपर सेठ करोड़ीमल ने पूछा, ‘‘क्या इससे अच्छी भूमि राजा साहब के कितों में और कहीं है?’’

‘‘मेरी जानकारी में तो नहीं। सब भूमि नदी से दूर है। उसकी सिंचाई कुओं के बल पर होगी और वह महँगी पड़ेगी।’’

सेठ साहब ने फकीरचन्द की बातें सुनकर राम को सम्बोधन कर कहा, ‘‘अब बताओ राम।’’

‘‘फकीरचन्द की सब बातें भ्रममूलक हैं। इसको लाभ इस कारण नहीं हो रहा था कि यह परिश्रम कर रहा है और इसके काम का ढँग उत्तम है। इसके लाभ का कारण केवल इसकी अच्छी भूमि है।’’

‘‘इसका अर्थ यह हुआ कि हमारी भूमि पर, जो-कुछ फकीरचन्द ने बताया है, करने पर भी लाभ नहीं होगा?’’

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