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उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘जी, नहीं है।’’
‘‘अर्थात् तुमसे यह राम नहीं हो सकता’’
‘‘नहीं।’’
‘‘तो आज सायंकाल की गाड़ी से यहाँ से चल दो। तुम्हारा यहाँ कुछ काम नहीं। मैंने तुमको शतरंज खेलने के लिए नहीं भेजा। जाकर मनमाड में ऊन के कारखाने तथा डिपो का काम देखो और वहाँ के काम का ब्यौरा प्रतिदिन लिखते रहना।’’
‘‘तो आप यहाँ ठहरेंगे क्या?’’
‘‘हाँ, मुझको फकीरचन्द की बात में तथ्य प्रतीत होता है। मैं उसके कथन की परीक्षा करना चाहता हूँ।’’
रामचन्द्र आश्चर्य में पिता का मुख देखता रह गया। कुछ विचार कर उसने कहा, ‘‘तनिक मैं भी तो देखूँ कि किस प्रकार आप असम्भव को सम्भव करते हैं।’’
‘‘कोई आवश्यकता नहीं। तुम अभी भोजन कर यहाँ से चल दो। जरौन से सायं छः बजे गाड़ी चलती है। फिर बीना से पंजाब मेल रात के नौ बजे मिल जायगी।’’
‘‘और माताजी?’’
‘‘वे मेरे साथ आएँगी।’’
फकीरचन्द को यह समझ आया कि बेटे से बाप अधिक स्थिर-बुद्धि है। इसमें ही उसके धनवान् बनने का रहस्य है। वह समझने लगा था कि यह आदमी है, जो यहाँ सफल हो सकेगा; परन्तु क्या यह खेतों के काम पर स्वयं ठहरेगा, उसको यह सम्भव प्रतीत नहीं हुआ।
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