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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।

7

फकीरचन्द का अनुमान सत्य था। करोड़ीमल उस जंगल पर अपना जीवन व्यतीत करने के लिए तैयार नहीं था।

जब रामचन्द्र अपना बिस्तर बाँध चला गया तो रात के भोजन के समय सेठ ने फकीरचन्द से उसके काम की आय के विषय में पूछ-गीछ करनी आरम्भ कर दी। उससे उसको फकीरचन्द की आर्थिक अवस्था का ज्ञान हो गया और उसने सन्तोष अनुभव किया। इसपर फकीरचन्द ने पूछा, ‘‘तो अब आप खेतों पर स्वयं काम कराएँगे?’’

सेठ करोड़ीमल हँस पड़ा। उसने कहा, ‘‘बेटा ! यह तो मैं मान गया हूँ कि यहाँ काम करने से लाभ होगा, परन्तु मैं उससे कहीं अधिक लाभ अपनी कोठियों में कर सकता हूँ। स्वयं यहाँ रहकर मैं काम नहीं करूँगा।’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘मैं अपने खेतों के लिए कोई ईमानदार प्रबन्धक ढूँढ़ना चाहता हूँ। इसकी खोज मैं कल से आरम्भ करूँगा।’’

‘‘विचार तो ठीक है। यदि कोई परिश्रमी और ईमानदार प्रबन्धक मिल जाय तो कुछ तो हो ही जायगा।’’

‘‘तुम्हीं यह काम क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘कौन-सा काम?’’

‘‘सेठ करोड़ीमल के खेतों का काम।’’

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