उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘भोजन यहाँ कमरे में करेंगे अथवा चौके में?’’
सुन्दरलाल हँस पड़ा। उसने कहा, ‘‘यूँ तो घर पर हम डाईनिंग टेबल पर खाते हैं, परन्तु ये चौके में भी खा सकती हैं।’’
इसपर सूसन ने कह दिया, ‘‘हम चौके में खायेंगे।’’
इस प्रकार बात तय हो गई। भोजन बनने में आधा घण्टा और लग गया और तब फकीरचन्द तथा दोनों मेहमान, चौके में आ गये। रामरखी ने भोजन परस दिया और वे खाने लगे। भोजन के समय सूसन ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहा, ‘‘मैं चाहती हूँ कि फार्मिंग का काम किया जाये।’’ इसपर फकीरचन्द ने कहा, ‘‘बिहारीलाल ने मुझको इस विषय में लिखा था। मैंने लिख दिया था कि आप आकर अपने लिए स्वयं निश्चय कर सकते हैं।’’
‘‘आपका पत्र बिहारीलाल ने हमको दिखाया था। हम कल से अपना निरीक्षण का काम आरम्भ करेंगे और आशा करते हैं कि दो-तीन दिन में किसी निर्णय पर पहुँच, अपना भावी कार्यक्रम बनाएँगे।’’
‘‘तबतक आप हमारे यहाँ रहिये और जिस विषय में आप मेरी सम्मति अथवा जानकारी चाहेंगे, वह मैं दूँगा।’’
भोजन समाप्त हुआ तो फकीरचन्द कुछ देर आराम कर पुनः काम पर चला गया और सूसन तथा सुन्दरलाल अपने कमरे में आराम करने के लिए चले गये।
वह लगभग तीन बजे मध्याह्नोत्तर जागी, तो कमरे से बाहर निकल फकीरचन्द की माता के पास जा पहुँची।
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