उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
रात को फकीरचन्द आया तो सुन्दरलाल के साथ उसकी बहुत बातें हुईं। फकीरचन्द ने सेठ करोड़ीमल के लड़के रामचन्द्र की बात भी बताई। इसपर सुन्दरलाल ने बताया, ‘‘वह तो महामूर्ख लड़का है। अपने पिता के मरने पर दिवाला निकालेगा।’’
‘‘इसपर भी आपको यह समझ लेना चाहिए कि यह एक व्यवसाय है, व्यापार नहीं और साथ ही यह सट्टेबाजी भी नहीं।
‘‘यह आवश्यक नहीं कि एक व्यापारी आदमी व्यवसायी भी हो। इसी प्रकार एक आदमी, जो नौकर की प्रवृत्ति रखता है, वह न तो व्यवसायी हो सकता है, न ही व्यापार कर सकता है।
‘‘हमारे यहाँ एक सूर्यकान्त है। वह आन्दोलन करने में और दूसरों के काम में मीन-मेख निकालने में बहुत ही चतुर है, परन्तु वह न तो किसी व्यवसाय में लग सकता है और न ही स्वतन्त्र रूप से विचार कर सकता है। वह जब यहाँ आया तो मजदूरों का संगठन कर, ऊधम मचाने लगा; परन्तु जबसे मैंने उसको नौकर रख, उससे काम लेना आरम्भ किया है, वह मेरे अधीन काम करने में सफल हो रहा है। वह नौकर रहने के लिए ही बिना है।’’
अगले दिन फकीरचन्द, सुन्दरलाल और सूसन को फार्म दिखाने के लिए ले गया। उसको देवगढ़ आये पाँच वर्ष से ऊपर हो चुके थे और लगभग चार सौ एकड़ भूमि वह काश्त में ले आया था। शेष में उसने जंगल ही रहने दिया था। उस चार सौ एकड़ में ही आम, नींबू, संतरे, पपीते की बगिया थी। गेहूँ मूँगफली, अरहर तथा गन्ने के खेत थे। आरा मशीन, कपड़ा बुनने और कपड़ा छापने का कारखाना था।
सूसन और सुन्दरलाल ने करोड़ीमल की भूमि भी देखी। एक हजार एकड़ में से सौ एकड़ के लगभग जंगल काटा जा चुका था।
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