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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


‘‘रहा मजदूर और मालिक का झगड़ा। इस झगड़े में भारी भ्रम काम कर रहा है। मजदूरों के मन में यह बात बैठा दी गई है कि उनके हित को सरकार के हाथों में ही सुरक्षित रह सकते है। साथ ही वे यह समझते हैं कि सरकार उनकी इच्छा के अनुसार काम करेगी। यह दोनों भ्रम चिरकाल तक रह नही सकते। यत्न तो यह होना चाहिए कि मालिक अपना व्यवहार अभी से ऐसा बना लें, जिससे मजदूरों के ये भ्रम तुरन्त ही निवारण कर दिये जायें। यह सम्भव है। मैं इस प्रकार से ही कार्य कर रहा हूँ। इसपर भी मैं मानता हूँ कि मेरे अकेले के करने से कदाचित् यह भ्रम दूर न हो सके। तब एक बार तो यहाँ भी विप्लव हो सकता है, परन्तु अन्त में होगा वही, जो मैं कहता हूँ। कारोबार सरकार के हाथ में पनप नहीं सकता। सरकार उसको चलाने के लिए एकाधिकार प्राप्त करेगी। तब लोग इससे ऊब जायेंगे और पुनः समझदारी का आविर्भाव होगा।’’

‘‘फकीरचन्द ! तुम कम्युनिस्टों को जानते नहीं। ये थोड़ी-सी शक्ति-प्राप्त कर ऊधम मचा देते हैं।’’

इसपर सूसन ने कहा, ‘‘कल को देवगढ़ में भूचाल आने की सम्भावना है, जिससे सब बना-बनाया काम बिगड़ जाने वाला है। आप चाहते हैं कि आज ही सबकुछ छोड़ दिया जाये?’’

‘‘देखो सूसन ! भूचाल के विषय में तो कोई निश्चितरूपेण नहीं कह सकता कि यह आयेगा अथवा नहीं, परन्तु यह वर्ग-युद्ध तो आ रहा है और वेग से आ रहा है। इसकी लपट में सबकुछ आने वाला है।’’

‘‘मैं ऐसा नहीं मानता।’’ फकीरचन्द ने कहा, ‘‘युद्ध पैसे वालों की भूल के कारण आरम्भ हुआ है। यह कुछ अंशों में मजदूरों में उचित शिक्षा के अभाव के कारण भी है।

‘‘पैसे वाले अपने नौकरों को अपने व्यापारिक परिवार का अँग नहीं मानते। उनको वेतन मात्र देने से ही अपना कर्तव्य पूरा हुआ मानते हैं। वास्तव में यह इस प्रकार है नहीं।

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