उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
सुन्दरलाल फकीरचन्द की इस लम्बी व्याख्या को सुन मुस्कराता रहा। जब फकीरचन्द कह चुका तो उसने कहा, ‘‘यह सब हवाई धोड़े दौड़ाये जा रहे हैं। इनमें कुछ भी तत्व नहीं है।’’
इसपर सूसन ने फिर कहा, ‘‘मैं तो यह कहती हूँ कि फकीर भैया की नीति से कार्य करने से देहात के रहने वालों का जीवन-स्तर ऊँचा होगा। इससे अयुक्तिसंगत व्यवहार के होने की सम्भावना कम-से-कम हो जायेगी। और फिर आज से बीस वर्ष पश्चात् क्या होगा अथवा क्या नहीं होगा, उसका अनुमान लगाकर, आज ही अकर्मण्य हो बैठ जाना कहाँ की बुद्धिमत्ता है?’’
‘‘क्या बम्बई के सट्टा मार्केट का काम अकर्मण्यता है?’’
‘‘अकर्मण्यता ही नहीं, प्रत्युत् पाप भी है। यदि जुआ खेलना पाप है, तो सट्टे का कार्य ऐसा क्यों नहीं?’’
‘‘नहीं सूसन ! तुम नहीं समझतीं। सट्टा बाजार में बड़े-बड़े दिमाग काम करते हैं। वहाँ पर अक्ल का अक्ल से सामना होता है।’’
‘‘मैं आपसे इस विषय पर मतभेद रखती हूँ। आओ हम परस्पर मतभेद स्वीकार कर लें।’’
‘‘परन्तु कार्य करने में हम परस्पर मतभेद नहीं रख सकते।’’
‘‘तो आप मेरा कहना मान जाइये। हमको यहाँ पर अपने विचारों का परीक्षण कर लेना चाहिए।’’
‘‘यही तो मैं कह रहा हूँ कि तुम मेरे साथ बम्बई चलो और वहाँ हम अपने भाग्य की परीक्षा करेंगे।’’
‘‘मैं भाग्य के भरोसे बैठना नहीं चाहती।’’
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