उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
इस पत्र के पन्द्रह दिन के पश्चात् बिहारीलाल का पत्र आया। उसमें उसने केवल दो पंक्तियाँ लिखी थीं–
‘‘सूसन बहिन ! तुमको बम्बई में आये बहुत दिन हो गये हैं। मैं समझता हूँ कि तुमको यहाँ आकर अपने परिचितों पर दयादृष्टि रखनी चाहिए। मैं तुमसे मिलने की बहुत इच्छा रखता हूँ।’’
इस समय खेतों में सिंचाई का काम हो रहा था। फसल के अच्छे तथा बुरे होने में इस काल को वह कठिन समझती थी। इसपर भी बिहारीलाल के पत्र से वह चिन्ता अनुभव करने लगी थी। अतः एक दिन वह फकीरचन्द के पास गई और बोली, ‘‘मुझको एक सप्ताह के लिए बम्बई जाना है। इस समय सिंचाई हो रही है। मैं कभी नहीं जाती यदि कार्य आवश्यक न होता। आप मेरी सहायता कर दीजिये।’’
फकीरचन्द ने शेषराम को सूसन के फार्म पर भेज दिया। उसका विचार था कि वह काम को सुचारु रूप से कर सकेगा।
इस प्रकार प्रबन्ध कर सूसन एकाएक बम्बई जा पहुँची। प्रायः छः बजे उसने अपने घर की घंटी बजाई तो नौकर रामू ने दरवाजा खोल दिया और वह मालकिन को देख अवाक् खड़ा रह गया।
सूसन ने उसको इस प्रकार खड़े देख पूछा, ‘‘रामू क्या है?’’
‘‘कुछ नहीं मालिकन ! सेठजी भीतर हैं, परन्तु...’’ वह आगे कुछ कह नहीं सका।
उसे चुप देख सूसन ने सब समझ कहा, ‘‘चिन्ता न करो। मुझे सब मालूम है।’’
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