उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
|
270 पाठक हैं |
बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
‘‘क्या लिखती है?’’
‘‘इसपर मैंने इनका पत्र निकालकर सुना दिया। पत्र सुन वे कुछ देर चुप बैठे रहे। फिर पूछने लगे, ‘सूसन के फार्म का क्या हाल है?’’
‘‘उसने लिखा है कि वर्ष के अन्त तक दस-पन्द्रह सहस्त्र की आय हो जायेगी और उसका अनुमान है कि पाँच वर्ष में फार्म पचास हजार की आय देने लगेगा।
‘‘सत्य?’’ फिर कुछ विचारकर उन्होंने कहा, ‘मेरी गिनती से भी यही अनुमान निकला था, परन्तु मुझको कोई वहाँ काम करने वाला नहीं मिला। राम तो देहात में रह ही नहीं सका। अच्छा देखो,’ उन्होंने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, ‘मैं तुमको एक लाख रुपये का ड्राफ्ट दे देता हूँ, जिससे तुम अपना रुपया वहाँ लगाकर, फार्म की उन्नति में हाथ बँटा सको। साथ ही मैं चाहता हूँ कि सूसन के साथ तुमको भिखारियों की भाँति नहीं रहना चाहिए।’’
‘‘इस प्रकार मैं एक लाख रुपया लेकर यहाँ आ पहुँची हूँ। कल मैं ललितपुर में अपना हिसाब बैंक में खोलने जा रही हूँ।
‘‘सूसन बहिन का तो कहना है कि इस कार्य में इतने रुपये की आवश्यकता नहीं, जितनी मेहनत और देखभाल की है। इनकी अनुमति से ही मैं यह रुपया बैंक में जमा कराने जा रही हूँ।
‘‘माँजी ! इसी प्रकार एक दिन ललिता भी आभूषणों से लदी-फदी यहाँ चली आयेगी।’’
रामरखी मुस्कराती रही। उसने इसके उत्तर में कुछ नहीं कहा।
|