उपन्यास >> धरती और धन धरती और धनगुरुदत्त
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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती। इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।
लकड़ी के फर्नीचर का काम और लोहार के काम के लिए उसने फकीरचन्द के साथ साझेदारी कर ली थी। फकीरचन्द द्वारा खोले गये उद्योग-धन्धों के सिखाने के काम में भी वह अपने भाग का खर्चा देनी लगी थी।
इसके साथ ही देवगढ़ से दोनों फार्मों तक पक्की सड़क बनवा ली थी। देवगढ़ से जिरौन तक सड़क तो डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने बनवा रखी थी। परिणाम यह हो रहा था कि अब दोनों फार्मों का माल सुगमता से बैलगाड़ियों से स्टेशन तक ले जाया जा सकता था।
बिहारीलाल ने गाँव में जीवन का स्पन्दन देखा। यह देख उसको वह दिन स्मरण हो आया, जब वह अपनी माँ और भाई के साथ बैलगाड़ी में, जो उन्होंने जिरौन से देवगढ़ आने के लिए दो रुपये में की थी, हिचकोले खाते हुए वहाँ पहुँचा था। अब तो गाँव के कई आदमियों ने घोड़े-ताँगे रख लिए थे और चार-चार आने में देवगढ़ से स्टेशन तक सवारी लेकर जाते थे।
एक दिन सूसन ने बिहारीलाल को एक नीले कागज पर एक नक्शा दिखाया। यह एक बिजलीघर बनाने की योजना थी। सूसन ने बताया, ‘‘मैं और तुम्हारे भाई साहब इसमें साझीदार हैं । नदी के तीन मील ऊपर से, नहर लाई जायेगी और उस पहाड़ी के पास, जहाँ नदी तेजी से नीचे को बहती है, बिजली की मशीन लगेगी और नहर के पानी से चलेगी। प्रान्तीय सरकार से स्वीकृति ले ली गई हैं। वह नहर राजा साहब की जमीन पर से आने वाली है। उनसे भी लिखत-पढ़त हो गई है। हम इसपर पचास हजार रुपया व्यय करने वाले हैं। नहर हम बनवा देंगे और मशीन बम्बई की एक फर्म लगा देगी।
‘‘हमारी यह योजना दो वर्ष में पूरी होगी और मैं आशा करती हूँ कि उसके पश्चात् बम्बई और देवगढ़ में कोई अन्तर नहीं रह जायेगा।’’
‘‘एक अन्तर तो रहेगा ही।’’ बिहारीलाल ने कहा, ‘‘एक स्थान पर अतुल धन-सम्पद् के साथ-साथ नग्न निर्धनता विद्यमान है और दूसरे स्थान पर सब खाते-पीते लोग होंगे।’’
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