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उपन्यास >> धरती और धन

धरती और धन

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :195
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 7640

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बिना परिश्रम धरती स्वयमेव धन उत्पन्न नहीं करती।  इसी प्रकार बिना धरती (साधन) के परिश्रम मात्र धन उत्पन्न नहीं करता।


बिहारीलाल ने अपनी विचार की हुई बात कह दी, ‘‘माँ ! तुम एक पत्र लिखो। उसका लेख मैं बना बना देता हूँ। तुम हस्ताक्षर कर देना। साथ ही शकुन्तला बहिन से एक पत्र लिखवा देता हूँ। मैं समझता हूँ कि काम बन जायेगा और एक-आध मास में ही भाभी तुम्हारे चरण स्पर्श कर, आशीर्वाद की भागी बन सकेगी।’’

‘‘अच्छा, लिखकर दिखाओ कि तुम क्या चाहते हो।’’

बिहारीलाल ने एक पत्र अपनी माँ की ओर से ललिता की माँ को लिख दिया। उसने लिखा–

‘‘प्रिय बहिन जी !

राम राम। एक दुर्घटना के घटने से, जो कदाचित् भ्रम के कारण अथवा किसी भूल के कारण घट गई थी, दो, भाग्य से मिलने वाले प्राणियों के भीतर एक दीवार खड़ी हो गई है। मैं इस बात को अनुभव करती हूँ और चाहती हूँ कि जैसे भी हो, इस दीवार को गिराकर मार्ग साफ कर दिया जाये।

‘‘अतः बहिन जी ! मैं आपसे और सेठजी से निवेदन करती हूँ कि वे पिछली बातों को भूल, ललिता और फकीरचन्द के भाग्य का मेल होने की स्वीकृति दे दें।

‘‘हमें इसमें भारी प्रसन्नता होगी और जहाँ तक मुझको पता चला है, ललिता को भी इससे सुख और सन्तोष मिलेगा।

‘‘मैंने अभी फकीरचन्द से बात तो नहीं की, परन्तु मैं विश्वास-पूर्वक कहती हूँ कि वह माँ के आग्रह की अवहेलना नहीं करेगा। मुझको भय सेठजी का है। इसलिए आपसे प्रार्थना कर रही हूँ कि आप बच्चों के सुख के मार्ग से बाधा दूर करने में हमारी सहायता करें।’’

जब बिहारीलाल ने यह लिखकर माँ को सुनाया, तो उसने चिन्ता के भाव में कहा, ‘‘इसमें कुछ अपनी हेठी की गन्ध आती है। मुझे तो झुकने में शोभा दिखाई देती है, परन्तु फकीर न जाने क्या समझेगा?’’

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