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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


पाँच वर्ष हुए उसकी वही आराम देनेवाली प्यारी पत्नी सुन्दर गुड़िया–सी लड़की को छोड़कर परलोक सिधार गई थी। मरते समय अपनी सारी करुणा को अपनी फीकी और श्री हीन आँखों में बटोर कर उसने बाकर से कहा था–मेरी रजिया अब तुम्हारे हवाले है, इसे कष्ट न होने देना–और इसी एक वाक्य ने बाकर के समस्त जीवन के रुख को पलट दिया था। उसकी मृत्यु के बाद ही वह अपनी विधवा बहन को उसके गाँव से ले आया था और अपने आलस्य तथा प्रमाद को छोड़कर अपनी मृत पत्नी की अन्तिम अभिलाषा को पूरा करने में संलग्न हो गया था। यह संभव भी कैसे था कि अपनी पत्नी की–जिसे वह दिलोजान से प्यार करता था, जिसके निधन का गम उसके हृदय के अज्ञात पर्दों तक छा गया था; जिसके बाद उम्र होने पर भी उसने दूसरा विवाह न किया था–अपनी उसी प्यारी पत्नी की अंतिम अभिलाषा की अवेहलना करता?

वह दिन–रात काम करता था, ताकि अपनी पत्नी की उस धरोहर की अपनी उस नन्हीं-सी गुड़िया को, भाँति-भाँति की चीजें लाकर प्रसन्न रख सके। जब भी कभी वह मंडी को आता, तो नन्हीं-सी रजिया उसकी टाँगों से लिपट जाती और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उसके गर्द से अटे हुए चेहरे पर जमा कर पूछती– अब्बा, मेरे लिए क्या लाये हो? तो वह उसे अपनी गोद में ले लेता और कभी मिठाई और कभी खिलौनों से उसकी झोली भर देता। तब रजिया उसकी गोद से उतर जाती और अपनी सहेलियों को अपने खिलौने या मिठाई दिखाने के लिए भाग जाती यही गुड़िया जब आठ वर्ष की हुई, तो एक दिन मचल कर अपने अब्बा से कहने लगी–अब्बा हम तो डाची लेंगे, अब्बा हमें डाची ले दो। भोली-भाली निरीह बालिका! उसे क्या मालूम कि वह एक विपन्न गरीब मजदूर की बेटी है, जिसके लिए डाची खरीदना तो दूर रहा, डाची की कल्पना करना भी गुनाह है। रूखी हँसी हँसकर बाकर ने उसे अपनी गोद में ले लिया और बोला–रज्जो, तू तो खुद डाची है। पर रजिया न मानी। उस दिन मशीर माल अपनी साँडनी पर चढ़कर अपनी छोटी लड़की को अपने आगे बिठाये दो-चार मजदूर लेने के लिए स्वभूमि स्थित उस काट में आये थे। तभी रजिया के नन्हें-से मन में डाची पर सवार होने की प्रबल आकांक्षा पैदा हो उठी थी, और उसी दिन से बाकर का रहा-सहा प्रमाद भी दूर हो गया था।

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