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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


बाकर ने जैसे स्वप्न से जागते हुए पश्चिम की ओर अस्त होते हुए सूरज की ओर देखा, फिर सामने की ओर शून्य में नजर दौड़ाई-उसका गाँव अभी बड़ी दूर था। पीछे की ओर हर्ष से देखकर और मौन रूप से चली आने वाली साँडनी को प्यार से पुचकारकर वह और भी तेजी से चलने लगा कहीं उसके पहुँचने से पहले रजिया सो न जाए।

मशीर माल की काट नजर आने लगी। यहाँ से उसका गाँव समीप ही था। यही कोई दो कोस। बाकर की चाल धीमी हो गई और इसके साथ ही कल्पना की देवी, अपनी रंग-बिरंगी तूलिका से उसके मस्तिष्क के चित्र पट पर तरह–तरह की तस्वीरें बनाने लगी। बाकर ने देखा-उसके घर पहुँचते ही नन्हीं रजिया, आह्लाद से नाचकर उसकी टाँगों से लिपट गई है और फिर डाची को देखकर उसकी बड़ी-बड़ी आँखें आश्चर्य और उल्लास से भर गई हैं। फिर उसने देखा–वह रजिया को आगे बिठाए, सरकारी खाले (नहर) के किनारे–किनारे डाची पर भागा जा रहा है। शाम का वक्त है, ठंडी-ठंडी हवा चल रही है और कभी कोई पहाड़ी कौवा अपने बड़े-बड़े परों को फैलाये और अपनी मोटी आवाज से दो-एक बार काँव-काँव करके ऊपर से उड़कर चला जाता। रजिया की खुशी का वारा-पार नहीं हैं। वह जैसे हवाई जहाज में उड़ी जा रही है, फिर उसके सामने आया कि वह रजिया को लिये बहावल नगर की मंडी में खड़ा है। नन्हीं रजिया मानो भौचक्की-सी है, हैरान और आश्चर्यान्वित–सी कई ओर अनाज के इन बड़े-बड़े ढेरों, अगणित छकड़ों और हैरान कर देने वाली चीजों को देख रही है। बाकर साह्लाद उसे सब की कैफियत दे रहा है। एक दुकान पर ग्रामोफोन बजने लगता है। बाकर रजिया को वहाँ ले जाता है। लकड़ी के इस डिब्बे से किस तरह गाना निकल रहा है, कौन इसमें छिपा गा रहा है– यह सब बातें रजिया के समझ में नहीं आतीं। यह सब जानने के लिए उसके मन में जो कुतूहल है वह उसकी आँखों से टपका पड़ता है।

वह अपनी कल्पना में मस्त काट के पास से गुजरा जा रहा था कि अचानक कुछ ख्याल आ जाने से वह रूका और काट में दाखिल हुआ।

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