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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


मशीर माल की काट भी कोई बड़ा गाँव न था। इधर के सब गाँव ऐसे ही हैं। ज्यादा हुए तो तीस छप्पर हो गये। कड़ियों की छत का या पक्की ईंटों का मकान इस इलाके में अभी नहीं। खुद बाकर की काट में पन्द्रह घर थे-घर क्या झुगियाँ थीं। मशीर माल की काट भी ऐसी बीस-पच्चीस झुगियों की बस्ती, केवल मशीर माल का निवास-स्थान कच्ची ईंटों से बना था, पर छत उस पर भी छप्पर की ही थी। नानक बढ़ई की झुगी के सामने वह रुका। मंडी जाने से पहले वह डाची का गदरा (काठी) बनने के लिए दे गया था। उसे ख्याल आया कि यदि रजिया ने साँडनी पर चढ़ने की जिद की, तो वह उसे कैसे टाल सकेगा। इसी विचार से वह पीछे मुड़ आया था। उसने नानक को दो आवाजें दीं, अन्दर से शायद उसकी पत्नी ने उत्तर दिया–घर में नहीं हैं, मंडी गये हैं।

बाकर का दिल बैठ गया। वह क्या करे, यह न सोच सका, नानक यदि मंडी गया है, तो क्या खाक बना कर गया होगा, लेकिन फिर उसने सोचा शायद बना कर रख गया हो, इससे उसे कुछ सान्त्वना मिली। उसने फिर पूछा– मैं साँडनी का पालन (गदरा) बनने के लिए दे गया था। वह बना या नहीं?

जवाब मिला–हमें नहीं मालूम!

बाकर का आधा उल्लास जाता रहा। बिना गदरे के वह डाची को क्या लेकर जाए। नानक होता तो उसका गदरा चाहे न बना सही, कोई दूसरा ही इससे माँगकर ले जाता। इस ख्याल के आते ही उसने सोचा चलो मशीर माल से माँग लें, उनके तो इतने ऊँट रहते हैं, तब तक मानक नया गदरा तैयार कर देगा। यह सोच कर वह मशीर माल के घर की ओर चल पड़ा।

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