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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


मैं तो अपनी किस्मत का फ़ैसला पहले से ही किये बैठा था। मैं ख़ूब समझ गया था कि वह बुढ़िया खुफ़िया पुलिस की कोई मुख़बिर है जो मेरे घरेलू मामलों की जाँच के लिए तैनात हुई होगी। कल उसकी रिर्पोट आयी होगी और आज मेरी तलबी है। खौफ़ से सहमा हुआ लेकिन दिल को किसी तरह सँभाले हुए कि जो कुछ सर पर पड़ेगी देखा जाएगा, अभी से क्यों जान दूँ, मैं महाराजा की खिदमत में पहुँचा। वह इस वक़्त अपने पूजा के कमरे में अकेले बैठै हुए थे, क़ाग़जों का एक ढेर इधर-उधर फैला हुआ था और वह खुद किसी ख़्याल में डूबे हुए थे। मुझे देखते ही वह मेरी तरफ़ मुख़ातिब हुए, उनके चेहरे पर नाराजगी के लक्षण दिखाई दिये, बोले—कुंअर श्यामसिंह, मुझे बहुत अफ़सोस है कि तुम्हारी बावत मुझे जो बातें मालूम हुईं वह मुझे इस बात के लिए मजबूर करती हैं कि तुम्हारे साथ सख़्ती का बर्ताव किया जाए। तुम मेरे पुराने वसीक़ादार हो और तुम्हें यह गौरव कई पीढ़ियों से प्राप्त है। तुम्हारे बुजुर्गों ने हमारे ख़ानदान की जान लगाकार सेवाएँ की हैं और उन्हीं के सिले में यह वसीक़ा दिया गया था लेकिन तुमने अपनी हरकतों से अपने को इस कृपा के योग्य नहीं रक्खा। तुम्हें इसलिए वसीक़ा मिलता था कि तुम अपने ख़ानदान की परवरिश करो, अपने लड़कों को इस योग्य बनाओ कि वह राज्य की कुछ ख़िदमत कर सकें, उन्हें शारीरिक और नैतिक शिक्षा दो ताकि तुम्हारी ज़ात से रियासत की भलाई हो, न कि इसलिए कि तुम इस रुपये को बेहूदा ऐशपरस्ती और हरामकारी में ख़र्च करो। मुझे इस बात से बहुत तकलीफ़ होती है कि तुमने अब अपने बाल-बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी से भी अपने को मुक्त समझ लिया है। अगर तुम्हारा यही ढँग रहा तो यकीनन वसीक़ादारों का एक पुराना ख़ानदान मिट जाएगा। इसलिए आज से हमने तुम्हारा नाम वसीक़ादारों की फ़ेहरिस्त से ख़रिज कर दिया और तुम्हारी जगह तुम्हारी बीवी का नाम दर्ज किया गया। वह अपने लड़कों को पालने-पोसने की ज़िम्मेदार है। तुम्हारा नाम रियासत के मालियों की फ़ेहरिस्त में लिखा जाएगा, तुमने अपने को इसी के योग्य सिद्ध किया है और मुझे उम्मीद है कि यह तबादला तुम्हें नागवार न होगा। बस, जाओ और मुमकिन हो तो अपने किये पर पछताओ।

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