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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


गजेन्द्र ने हाथ जोड़कर कहा– आप लोग मुझे माफ़ कीजिए, मैं शिकार खेलने न जा सकूँगा। फूलों की यह बहार देखकर मुझ पर मस्ती-सी छा गयी है, मेरी आत्मा स्वर्ग के संगीत का मज़ा ले रही है। अहा, यह मेरा ही दिल जो फूल बनकर चमक रहा है। मुझ में भी वही लाली है, वहीं सौंदर्य है, वही रस है। मेरे हृदय पर केवल अज्ञानता का पर्दा पड़ा हुआ है। किसका शिकार करें? जंगल के मासूम जानवारों का? हमीं तो जानवर हैं, हमीं तो चिड़ियाँ हैं, यह हमारी ही कल्पनाओं का दर्पण है जिसमें भौतिक संसार की झलक दिखाई पड़ रही है। क्या अपना ही ख़ूनकरें? नहीं, आप लोग शिकार करने जायँ, मुझे इस मस्ती और बहार में डूबकर इसका आनन्द उठाने दें। बल्कि मैं तो प्रार्थना करूँगा कि आप भी शिकार से दूर रहें। ज़िन्दगी खुशियों का ख़जाना है उसका ख़ून न कीजिए। प्रकृति के दृश्यों से अपने मानस-चक्षुओं को तृप्त कीजिए। प्रकृति के एक-एक कण में, एक-एक फूल में, एक-एक पत्ती में इसी आनन्द की किरणें चमक रही हैं। ख़ून करके आनन्द के इस अक्षय स्रोत को अपवित्र न कीजिए।

इस दार्शनिक भाषण ने सभी को प्रभावित कर दिया। सूबेदार साहब ने चुन्नू से धीमे से कहा– उम्र तो कुछ नहीं है लेकिन कितना ज्ञान भरा हुआ है। चुन्नू ने भी अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया– विद्या से ही आत्मा जाग जाती है, शिकार खेलना है बुरा।

सूबेदार साहब ने ज्ञानियों की तरह कहा– हाँ, बुरा तो है, चलो लौट चलें। जब हरेक चीज़ में उसी का प्रकाश है, तो शिकारी कौन और शिकार कौन अब कभी शिकार न खेलूँगा।

फिर वह गजेन्द्र से बोले-भइया, तुम्हारे उपदेश ने हमारी आँखें खोल दीं। क़सम खाते हैं, अब कभी शिकार न खेलेंगे।

गजेन्द्र पर मस्ती छाई हुई थी, उसी नशे की हालत में बोला– ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद है कि उसने आप लोगों को यह सदबुद्धि दी। मुझे खुद शिकार का कितना शौक था, बतला नहीं सकता। अनगिनत जंगली सूअर, हिरन, तेंदुए, नीलगायें, मगर मारे होंगे, एक बार चीते को मार डाला। मगर आज ज्ञान की मदिरा का वह नशा हुआ कि कहीं अस्तित्व ही नहीं रहा।

होली जलाने का मुर्हूत नौ बजे रात को था। आठ ही बजे से गाँव के औरत-मर्द, बूढ़े-बच्चे गाते-बजाते अबींरे उड़ाते होली की तरफ़ चले। सूबेदार साहब भी बाल-बच्चों को लिए मेहमान के साथ होली जलाने चले।

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