कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
क़ुरैशियों ने जब यह ख़बर पाई तब वे जल उठे। ग़ज़ब खुदा का। इसलाम ने तो बड़े-बड़े घरों पर हाथ साफ़ करना शुरू किया। अगर यही हाल रहा तो धीरे-धीरे उसकी शक्ति इतनी बढ़ जायेगी कि उसका सामना करना कठिन हो जायगा। लोग अबुलआस के घर पर जमा हुए। अबूसिफ़ियान ने, जो इस्लाम के शुत्रुओं से सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे (और जो बाद को इसलाम पर ईमान लाया), अबुलआस से कहा– तुम्हें अपनी बीवी को तलाक देना पड़ेगा।
अबुल०– हर्गिज नहीं।
अबूसि०– तो क्या तुम भी मुसलामन हो जाओगे?
अबु०– हर्गिज नहीं।
अबूसि०– जो उसे मुहम्मद ही के घर रहना पड़ेगा।
अबु०– हर्गिज नहीं, आप मुझे आज्ञा दीजिए कि उसे अपने घर लाऊँ।
अबूसि०– हर्गिज नहीं।
अबु०– क्या यह नहीं हो सकता कि मेरे घर में रह कर वह अपने मतानुसार खुदा की बन्दगी करें?
अबूसि०– हर्गिज नहीं।
अबु०– मेरी कौम मेरे साथ इतनी भी सहानुभूति न करेगी?
अबूसि०– हर्गिज नहीं।
अबु०– तो फिर आप लोग मुझे अपने समाज से पतित कर दीजिए। मुझे पतित होना मंजूर है, आप लोग चाहें जो सजा दें, वह सब मंजूर है। पर मैं अपनी बीवी को तलाक नहीं दे सकता। मैं किसी की धार्मिक स्वाधीनता का अपहरण नहीं करना चाहता, वह भी अपनी बीवी की।
अबूसि०– कुरैश में क्या और लड़कियाँ नहीं हैं?
अबु०– जैनब की-सी कोई नहीं।
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