कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
अबूसि०– हम ऐसी लड़कियाँ बता सकते हैं जो चाँद को लज्जित कर दें।
अबु०– मैं सौन्दर्य का उपासक नहीं।
अबूसि०– ऐसी लड़कियाँ दे सकता हूँ जो गृह-प्रबन्ध में निपुण हों, बातें ऐसी करें जो मुँह से फूल झरें, भोजन ऐसा बनायें कि बीमार को भी रुचि हो, और सीने-पिरोने में इतनी कुशल कि पुराने कपड़े को नया कर दें।
अबु०– मैं इन गुणों में किसी का भी उपासक नहीं। मैं प्रेम और केवल प्रेम का भक्त हूँ और मुझे विश्वास है, कि जैनब का-सा प्रेम मुझे सारी दुनिया में नहीं मिल सकता।
अबूसि०– प्रेम होता तो तुम्हें छोड़कर दग़ा न करती।
अबु०– मैं नहीं चाहता कि प्रेम के लिए कोई अपने आत्मस्वातन्त्रय का त्याग करे।
अबूसि०– इसका आशय यह है कि तुम समाज के विरोधी बनकर रहना चाहते हो। अपनी आँखों की क़सम, समाज अपने ऊपर यह अत्याचार न होने देगा, मैं समझाये जाता हूँ, न मानोगे तो रोओगे।
अबूसिफ़ियान और उनकी टोली के लोग तो धमकियाँ देकर उधर गये इधर अबुलआस ने लकड़ी सम्हाली और ससुराल जा पहुँचे। शाम हो गई थी। हज़रत अपने मुरीदों के साथ मगरिब की नमाज़ पढ़ रहे थे। अबुलआस ने उन्हें सलाम किया और जब तक नमाज़ होती रही, गौर से देखते रहे। आदमियों की कतारों का एक साथ उठना-बैठना और सिजदे करना देखकर उनके दिल पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था। वह अज्ञात भाव से संगत के साथ बैठते, झुकते और खड़े हो जाते थे। वहाँ का एक-एक परमाणु इस समय ईश्वरमय हो रहा था। एक क्षण के लिए अबुलआस भी उसी भक्ति-प्रवाह में आ गये।
जब नमाज़ ख़त्म हो गई तब अबुलआस ने हज़रत से कहा– मैं जैनब को विदा करने आया हूँ।
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